9.2.12

बसंत


बहुत दिनो के बाद
सुबह-सुबह
हवा से
घर की कुण्डी खड़खड़ाई
ठंड से अकुलाये/कठुआये अज़गर की नींद टूटी
दिल ने ली अंगड़ाई
जूतों ने फीते कसे
हाथों ने
मचलकर द्वार खोले
मन में जगी
उमंग
आया क्या बसंत ?

बाहर कोई न था
मेन गेट के पास
ठंडी राख पर
हमेशा की तरह
सो रहा था
सहमा सिकुड़ा
वही
मरियल कुत्ता

बसंत की आस में बौराया
निकल पड़ा बाहर सड़क पर
जहां घूम रहे थे
स्वेटर, मफलर, शाल, जैकेट, ट्रैक-सूट
और कुछ
भागते पहिये

जूते
टहलते रहे
देर तक
झांकती रहीं
मंकी कैप में छिपी
दो आँखें
  
रास्ते में दिखे
धूल उड़ाते
मेहनती झाड़ू,
बाजार जा रही
ग्रामीण औरतों के सर पर
ताजी सब्जियों के बोझ से लदी
भारी गठरियाँ,
मैले कुचैले वस्त्रों में
दमकता चेहरा,
चमकती आँखेँ,
झिलमिलाते स्वेद कण,
शहर क्या जाने
सरसों के खेत !
नहीं दिखी एक भी
पीली चुनरी
या फिर
खेत फुल्ली
कुसुम्मी ही

नहीं दिखे
पियराकर झरे
एक भी पत्ते
पूर्ण नग्न हो
नव पल्लवों से अंकुरित/आच्छादित हो रही
शाखाएं

एक कोने
मौन खड़ा था
बूढ़ा
धूरियाया/हरियाया
पीपल

जब से सुना है
बड़े भाई सा के ऊँचे बंगले की
मोटी चहारदिवारी के भीतर
अरूणोदय के साथ
ठिठोली करते
आम्र वृक्ष की फुनगियों पर
इठलाते
बौर को देखकर
चांदनी में
रश्क करती हैं
रातरानी
दिल से
एक आह! ही निकलती है
अभी तो
वहीं कैद है
हमारा बसंत।
.........................

37 comments:

  1. वाह...
    लाजवाब रचना...
    दिल को छू गयी..

    आपके द्वार भी वसंत आये...फूल खिलाए..रंग बिखराए :-)
    शुभकामनाएँ..

    ReplyDelete
  2. वाह ! बसंत की माया ! बहुत खूब ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. 'बसंत' की 'माया' ! वाह ! बहुत बहुत मुबारकबाद दोनों को !

      Delete
  3. पाण्डे जी!
    वसंत के अटके होने का दुःख तो हमें भी है.. वसंत पंचमी के बाद जीवन के बोझ के साथ इस माटी की देह पर से कपड़ों का बोझ भी कम कर दिया था कि बसंत आ गया.. मगर भेदती हवाओं ने तो बस-अंत ही कर दिया..! लंबे अंतराल के उपरांत आपकी उपस्थिति ऊष्णता लेकर आयी!
    पुनश्च:
    इसके पूर्व कि अली सा टोकें, मैं ही टोक देता हूँ कि चांदनी में 'रश्क' के स्थान पर 'रक्स' कर लें.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सलिल जी ,
      प्रेम में रश्क हो तो रक्स किया ही नहीं जा सकता ! रक्स तो वो ही करेगा जिससे रश्क किया जा रहा है :)

      यहां पाण्डेय जी रात रानी के रश्क पे फोकस कर रहें हैं क्योंकि उन्हें पता है कि चांद एक है जबकि रात रानियां दो :)

      इधर आप सोच रहे हैं कि चांद भी एक और रात रानी भी एक इसलिए आपको रक्स की सूझ रही है :)

      मेरे ख्याल से आपके सुझाए हालात में आप सही हैं पर पाण्डेय जी के बनाये हालात में वे ही सही हैं :)

      Delete
    2. सलिल जी..

      भेदती हवाओं ने बस-अंत ही कर दिया। बिलकुल मेरे मन की बात है। रश्क जानबूझ कर लिखा है, सुधारने का मन नहीं कर रहा।

      अली सा...

      आम के बौर पर रश्क करे रातरानी
      रातरानी रक्स करे तो आम बौराये

      Delete
    3. सुधारने की आवश्यकता नहीं.. अली सा ने स्पष्ट कर दिया!! मैं दूसरी तरह पढ़ रहा था.. क्षमा!!

      Delete
  4. एक तो देर तक सोकर जागे
    और फिर बसंत की तलाश में
    घर से निकल भागे
    ढूंढते रहे तारकोल की सड़कों में
    इधर उधर पीछे आगे
    नहीं झांका तो बस अपने मन में
    और नहीं सोचा कि
    बाहर तैनात श्वान के भय से
    बड़े भाई सा वहीं छुप गए हैं
    वर्ना छोटे के लिए लाया हुआ
    बसंत उसे दे ही देते :)

    ReplyDelete
    Replies
    1. श्वान तैनात नहीं है अली सा, यह तो नियति बन चिपक गया है जीवन से।
      बड़े भाई चाहते भी हैं कभी लौटाना बसंत तो मुआँ डराकर भगा देता है।:)

      Delete
  5. बसंत कहीं नहीं है क़ैद,
    वह छितराया हुआ है हर जगह,
    समाया हुआ है हर किसी की देह में,
    बस उसे देख-सुन नहीं पा रहे हैं हम,
    आप फिर भी पहचान रहे हैं !

    बहुत सुन्दर रचना.....निराला-टाइप !
    मानवीकरण अलंकार बिलकुल सजा हुआ !

    ReplyDelete
  6. आप कह रहे हैं कि बसंत बड़े भाई सा की कोठी में कैद है, लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि बसंत की भी रजामंदी हो...!!

    ReplyDelete
  7. बसंत को ढूंढना कैसे ... वह कभी कैद नहीं होता , वह ठिठुर सकता है , रूठ सकता है - पर कृत्रिमता में नहीं जीता ... जो जी ले वह बसंत नहीं !

    ReplyDelete
  8. गहरे भाव लिए सुंदर रचना।

    ReplyDelete
  9. Basant to kaid mein nahi par sabki soch aur basant ko dekhne waali aankhen jaroor kaid ho gayee hain aaj .... Shayad haalat ki Maar hai ...
    Bahut hi khoobsoorti se Poora drishy khada kiya hai basant ki Subha ka ... Lajawab Devendr Ji ...

    ReplyDelete
  10. जन्मदिन (09.02.12) की बधाई! मंगलकामनायें।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ई वाले जन्मदिन को तो हम भूलही गये थे! धन्यवाद।

      Delete
    2. भूली हुई यादो मुझे इतना ना सताओ :)

      जन्मदिन पर बसंत से इस कदर छेड़छाड :)

      Delete
  11. बढ़िया प्रस्तुति ||

    ReplyDelete
  12. ये बडे भाई साहब कौन हैं ? कहीं कांग्रेस के नेता की तरफ तो इशारा नहीं ? मगर,अगर ये सच है तो मेरे विचार से सभी नेता की तर्फ इशारा करना ठीक होगा.

    ReplyDelete
  13. चलते जुटे, भागते पहिये........छा गए देव बाबू....बड़े दिन बाद कोई पोस्ट आई आपकी....पर शानदार है ।

    ReplyDelete
  14. अभी शहर के बाहर 2000 किलोमीटर की यात्रा कर आ रहा हूं। नागपुर ले उस पार वसंत मिला। आम के पेड़ों पर खूब लदा था।

    ReplyDelete
  15. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  16. वसंत पंचमी के दिन से ढूंढ रहा हूँ वसंत को
    बहुत खोजा......अगल-बगल, गली-सड़क
    कमरे में ...सोफे पर ...
    घर की छत पर....
    पर वह कहीं नहीं मिला.
    आज बहुत दिन बाद जंगल गया
    तो वह दिख गया ....
    मैंने पूछा -
    कब से खोज रहा हूँ तुम्हें....
    यहाँ क्यों बैठे हो?
    वह बोला-
    शहर में लोग मुझे खरीदने लगते हैं
    मुझ पर बोलियाँ लगती हैं
    डरता हूँ
    मैं कैद नहीं होना चाहता
    गमले का गुलाब नहीं बनना चाहता
    इसलिए यहाँ अपनी पुरानी झोपड़ी से
    बाहर नहीं निकलता हूँ

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिचारे को नहीं पता जंगल भी काटे जा रहे हैं:)

      Delete
  17. मौसम कितने ही बदलेंगे,
    किसकी अँगड़ाई शापित है

    ReplyDelete
    Replies
    1. जिसने जनम लिया दीन बन
      बस उसकी अंगड़ाई शापित है।

      Delete
  18. एक अच्छी रचना बधाई

    ReplyDelete
  19. सुंदर शाब्दिक अलंकरण लिए एक उत्कृष्ट रचना .....

    ReplyDelete
  20. अब तक तो बंसत आपको मिल ही गया होगा। वैसे खूब खबर ली आपने।

    ReplyDelete
  21. बसंत, बसंता और\या बसंती की तो देखी जायेगी, फ़िलहाल जन्मदिन की विलंबित शुभकामनायें स्वीकार करें। सुकुलजी तक धन्यवाद पहुँचे।

    ReplyDelete
  22. बसंत की छटा अद्भुत रूप में प्रस्तुत की है. बहुत उत्कृष्ट कोटि की रचना.

    ReplyDelete
  23. यह दृष्टि भेद है या दृश्य भेद! :)

    ReplyDelete
  24. बसंत ना मिला देखने को, अभी तक तो. ... आपकी लाइनों ने कई दृश्य याद दिलाये.

    ReplyDelete
  25. ...गर बसंत ना होता तो .....यही सोच कर बसंत को जी लेंगे !
    तू नहीं तो तेरी याद सही !

    ReplyDelete
  26. "joote tehelte rahe, jhaankti rahi monkey cap me chhipi do aankhein" ... to think of expressions like these itself it commendable!

    ReplyDelete