11.7.15

अनोखा देश


अभी थोड़ी देर के लिये झपकी लग गई थी। इतने में एक निराले देश में घूम आया। वहाँ की जनता यह जानकर हैरान रह गई कि हमारे देश मे बच्चों को पढ़ाने, परिवार के सदस्यों का इलाज कराने, शादी कराने और घर बनाने में अपनी जेब से पैसे खर्च करने पड़ते हैं! मुझे यह जानकर हैरानी हुई क़ि वहाँ ये सभी खर्च वहां की सरकार करती है!

उस देश में सारे खर्च बैंक के माध्यम से ही किये जा सकते थे। नकदी किसे कहते हैं, वहाँ के लोग जानते ही नहीं थे। बैंक में जमा धन की भी एक निर्धारित सीमा थी। इससे अधिक धन जमा होते ही आयकर के रूप में पैसा सरकारी खजाने में अपने आप ट्रांसफर हो जाता था। वे उतने सम्मानित नागरिक कहलाते थे जितने अधिक धन सरकारी खजाने में जमा होते थे। मैंने सोचा जब अधिक आय सरकारी खजाने में ही जमा होनी है तो यहाँ के लोग अकर्मण्य होंगे लेकिन सब के सब बड़े मेहनती! होड़ लगी थी लोगों में अधिक से अधिक पैसा सरकारी खजाने में जमा कराने की!!!

दरअसल यहाँ की व्यवस्था ही ऐसी थी। शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएँ भले एक जैसी थी मगर आदमी की प्रतिष्ठा, घर का आकार सब उसके द्वारा अर्जित ग्रेड पर निर्धारित थी। ए + वाले का बंगला, किसी राजा के महल जैसा। कार, नौकर-चाकर सब सरकारी। सामान्य मजदूरों के डी श्रेणी के घर भी अपने घर से अच्छे दिखे! मैंने सोचा तब तो यहाँ कोई आंदोलन होता ही नहीं होगा! लेकिन मैं फिर गलत था।चौराहे पर भीड़ जमा थी। लोग हवा में हाथ लहरा रहे थे।  नारे लगा रहे थे-कपड़ा पहनना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है! नारे सुनकर मेरी तो नींद ही उड़ गई। आदमी कभी संतुष्ट नहीं हो सकता। 

अनोखे देश की हर बात निराली थी। मैंने एक जोड़े से पूछा तुम लोग सरे राह प्रेम प्रदर्शन करते हो, शर्म नहीं आती! सरकार कपड़े नहीं देती तो क्या नंगे-पुंगे घूमोगे? वे हंसकर कहने लगे-हम तो पूजा कर रहे थे! मैंने घृणा से कहा-छी:! यह भी कोई पूजा है? वे हँसने लगे। हाँ, भाई हाँ। हमारे देश का नाम 'प्रेम नगर', हमारे भगवान का नाम 'प्रेम' और दूसरे से प्रेम करना हमारी पूजा! उसने मुझे प्यार से देखा और मुस्कुरा कर कहा-आओ! तुम्हें पूजा करना सिखायें। मैं भाग खड़ा हुआ। मेरी नींद फिर उड़ गई।

अनोखे देश की हर बात निराली। जब मैंने जाना कि प्रेम नगर के देवता भी प्रेम, धर्म भी प्रेम और पूजा भी आपस में प्यार करना है तो मुझे वहाँ कि सामाजिक सरचना के बारे में  जानने की इच्छा हुई कि वहाँ कितनी जातियाँ, उप जातियाँ रहती हैं? मैंने एक लड़के से उसका नाम पूछा तो उसका नाम सुनकर झटका सा लगा! प्रेमानन्द, 6 फ़रवरी 1995!!! मैंने हंसकर कहा-मैंने तुम्हारी जन्म तिथि थोड़ी न पूछी है। किस जाति के हो? जाति! सुनकर वह हंसने लगा। यहाँ जाति-वाति नहीं होती। यहाँ लोगों के नाम के आगे बस जन्म तिथि लिखी जाती है। यही कारण है कि एक जैसे नाम वाले बहुत से लोग मिल जाते हैं। 

सुनकर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। वाह! क्या बात है!!! न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी।

7 comments:

  1. डायनामिक पर आपका स्वागत है !
    रोचक प्रस्तुति !

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  2. झपकी के अंदर जाना ही समाधान है झपकी आती रहे :)

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  3. खूबसूरत ख्याल जो आये तो आते चले गए ... पर कब तक ... लाईट चली जायेगी तो नींद टूट जाएगी ..

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  4. अनोखा देश? क्या बात है.

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  5. सुंदर सपना..

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