9.4.16

लोहे का घर-१२

रस्ता लम्बा इसलिए क़ि मंजिल है अति दूर
रस्ते को मंजिल समझ, पग-पग चमके नूर।



फिफ्टी डाउन मिल ही गई आज तो! जितनी देर से मैं निकला उतनी देर से वो आई। बड़ी तेज रफ़्तार है। टाइम कवर करने के मूड में लगती है। अभी भूंसे का गुबार सा भर गया था बोगी में, अभी आ रही है ठंडी, ताजी हवा। किसी किसान के खेत में रतजगा है आज। हो रही होगी गेहूँ की दंवाई। लहर-लहर, उछल-उछल कर चल रही है। जलालगंज का पुल थरथरा कर कांप सा गया था। खालिसपुर नजदीक है।
साथी मस्त हैं। कुछ मनबढ़ विद्यार्थी उपद्रव कर रहे थे, अब शांत हैं। बन्दर और बच्चे कब क्या कर जांय पता नहीं चलता। कब किसे काट लें, कब किसकी पगड़ी उतार दें। ऐसे मौकों पर शेष यात्रियों की शराफत देखते ही बनती है।
अगल-बगल के यात्री नये-नये मुद्दे तलाश कर बहस कर रहे हैं। सब व्यवस्था को दोष दे रहे हैं। इनके बहस को सुनकर कोई और विचार आ ही नहीं पा रहे! ‪#‎ट्रेन‬ में बैठकर अच्छा लिखना बहुत कठिन है, खासकर तब जब हम किसी भीड़-वाली बोगी में यात्रा कर रहे हों। इनकी बहस में हिस्सा लेने से अच्छा तो कान में हेडफोन लगाकर कोई गाना सुनना है।
बाबतपुर आ गये। हवाई अड्डे की लाइटिंग अँधेरे में अच्छी दिख रही है। यह मुझे ठीक-ठीक नहीं पता कि सब जगह अँधेरा है इसलिये हवाई अड्डे में उजाला है या हवाई अड्डा में उजाला है इसलिये सब जगह अंधेरा है। कुछ लोग खुश हैं इसलिए सब अधिक दुखी हैं या सब दुखी हैं इसलिए कुछ लोग खुश हैं।
अब लोग भरष्टाचार पर बहस कर रहे हैं! वे भी बहस में हिस्सा ले रहे हैं जिनके पास स्लीपर में बैठने योग्य टिकट नहीं है!!!
अपना बनारस आने वाला है। हर गङ्गे हर गंगे। वही लूटते पूण्य यहां पर जो होते मन के चंगे।

भंडारी स्टेशन में ठीक समय पर आई गोदिया। बर्थ खाली थी लेट गया। ठंडा वाला माझा पानी, मैंगो जूस, चाय-काफी चाय-चाय, कोल्ड ड्रिंक मैंगो फ्रूटी, ठंडा पानी का बोतल, हरा-हरा खीरा, गरमा गरम वेज बिरियानी, अंडा बिरियानी...अनवरत ऐसी आवाजें आ रही हैं। चली नहीं है अभी ‪#‎ट्रेन‬। अभी 8.12 हुआ है, छूटने का समय 8.15 है। भारत में कभी-कभी ट्रेन अनूठे अधिकारी की तरह एकदम सही समय पर चलती है! लो, चल दी। मतलब 8.15 हो गया। ट्रेन के चलने पर बोगी में अभी-अभी किसी ने नारा लगाया-बोलो शंकर भगवान की जय! काशी जा रहा भक्तों का जत्था होगा।
अब वेंडरों की आवाजें आनी बन्द हो चुकी हैं। इस बोगी में अपने आस-पास भीड़ नहीं है। सभी यात्री आराम से पसरे हुये हैं। इतने सुकून से तो घर के बिस्तर में भी नहीं सो पाते होंगे! जितने चैन से शाम के समय यहां लेटे हुये हैं!!! गोदिया अपना रंग जमा रही है। मेरा मतलब धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ चुकी है। पटरियों की खटर-पटर बता रही है कि जफराबाद स्टेशन है, भगवान ने चाहा तो यह सीधे बनारस ही रुकेगी। रेलवे टाइम-टेबुल के हिसाब से इसका अगला स्टेशन बनारस ही है। रफ़्तार धीमी हो गई है, हारन भी बजा रही है, कहीं कोई भैंस तो नहीं गुजर रही है पटरी से! नहीं, जफराबाद स्टेशन क्रास कर रही है। कहना मुश्किल है कि यह यहां के स्टेशन मास्टर को सलामी दे रही थी या स्टेशन मास्टर ठीक समय पर चलने के लिए इसे बधाई दे रहा था!
फिर रफ़्तार पकड़ी है इसने। शाबासी पा कर मस्ता गई लगती है। इतनी तेज चल रही है कि खुली खिड़की से हवाएँ आंधी की तरह सरसरा कर गंजी खोपड़ी को सहला रहे हैं। यदि किसी किसान के खेत में गेहूँ की दँवाई चल रही होगी तो पूरी बोगी एक झटके से भूंसे से भर जायेगी। ट्रेन की रफ़्तार से पटरियों की खड़खड़ाहट और पुल की थरथराहट बढ़ गई है। कोई विदेशी इस ट्रेन के स्लीपर कोच में यात्रा कर रहा होगा तो पटरियों के शोर से उसकी हडबडाहट भी बढ़ गई होगी। इस मामले में हम भारतीय बड़े बहादुर हैं, जानते हैं कि एक दिन मरना ही है फिर क्या डरना! कभी किसी अंग्रेज ने आश्चर्य व्यक्त किया था कि इन पटरियों पर इतनी तेज रफ़्तार में ट्रेने चलती कैसे हैं! उस बेवकूफ को नहीं मालूम कि जब तक चलती हैं तब तक चलती हैं जब नहीं चल पातीं तो पटरियों से उतर जाती हैं। मगर इसका यह मतलब थोड़ी है कि हम गिरने के भय से तेज भागना बन्द कर दें। अभी क्या, अभी तो हम इन्ही पटरियों पर गतिमान के बाद बुलेट चला कर दिखाएंगे!
बड़ी खामोशी है। ट्रेन के अलावा कोई यात्री शोर नहीं कर रहा। सब सोने का अभिनय कर रहे प्रतीत हो रहे हैं। वरना इतनी खटर-पटर और बगल से अचानक गुजरती दूसरी ट्रेन की कान फाडू चीख के बीच कोई सो सकता है भला! घर में क्या इन थके मांदे पुरुषों की पत्नियाँ इससे भी ज्यादा शोर करती हैं! शायद दफ्तर में बॉस और घर में पत्नियों के सताये पुरुष सफर में ऐसे ही चैन से घोड़ा बेच कर सोते हैं। अरे! उठो भाई!!! बनारस अब करीब है। दारू तो नहीं चढ़ा रख्खी सबने!

1 comment:

  1. ghar me biwi ke sataye tren me chikh ki aawaj bhi sahajta se le sakate hain !
    biwi ke baten sun jawab

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